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投放时间: 2025-06-26 08:00:00
25 जून 1975 आजाद भारत का सबसे काला कालखण्ड...
भारतीय राजनीति और लोकतंत्र के इतिहास के सबसे विशाल काला अध्याय 'आपातकाल' के खिलाफ उठे हर स्वर को कोटि-कोटि नमन।
पूज्य पिताजी स्व. हरीश जी ने मुझे बताई थी आपातकाल की विभीषिका। जब देशवासियों का कांग्रेस से मोहभंग हो गया, कांग्रेस को अपनी हार तय दिख रही थी, तब इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगाकर विरोध के क्रूर दमन का कुत्सित निर्णय ले लिया। कांग्रेस की दमनकारी सरकार बड़ी संख्या में जनसंघ के कार्यकर्ताओं को अकारण जेल भेज रही थी। पार्टी को चिन्ता हुई कि गिरफ्तार कार्यकर्ताओं के परिवारों का क्या होगा? उस दौरान पिताजी भारतीय जनसंघ के प्रदेश महामंत्री थे।
पूजनीय नानाजी देशमुख जी ने पिताजी को गिरफ्तारी देने से मना किया। भूमिगत होकर जेल में बन्द कार्यकर्ताओं के परिजनों की चिन्ता करने का निर्देश दिया। पिताजी दिन भर कहीं छिपे रहते और रात में उन कार्यकर्ताओं के परिजनों से भेंट करते, जिनकी आजीविका का एकमात्र साधन, जेल में बन्द है। रात भर पिताजी उनके राशन इत्यादि की व्यवस्था करते और भोर होते होते पुनः कहीं भूमिगत हो जाते। एक बार तो कई दिनों तक उन्हें एक कार्यकर्ता की गुमटी में शरण लेनी पड़ी। इस दौरान पिताजी प्रतिदिन वेश बदल कर निकलते। पोस्ट में जो चित्र लगा है, वह उनका ही है। इस चित्र में पिताजी सेना के सेवानिवृत कर्नल का रूप धारण किए हुए थे।
आपातकाल के दौरान अगस्त माह में मेरा जन्म हुआ। सरकार ने अस्पताल से घर तक पिताजी की गिरफ्तारी के लिए जाल बिछाया। यह घेरा इतना मजबूत था कि पिताजी मुझे देखने ही नहीं आ सके।
उन्हें पकड़ने के सभी प्रयास विफल होने पर सरकार ने उनकी गिरफ्तारी पर इनाम रखा। जब उससे भी सफलता नही मिली तो हमारे घर की कुर्की कर दी गई।
कुर्की के दौरान घर में बहुत अधिक सामान न मिलने पर क्रोधित पुलिस वालों ने खिड़की-दरवाजे के पल्ले भी उखाड़ लिए। उन्हें कांग्रेस सरकार का दिया टारगेट जो पूरा करना था। घर का अंतिम सामान, मेरा पालना और दूध की बोतल जब पुलिस वाले ले जाने लगे तो माँ तन कर सामने आ गईं। कहा, यह नही ले जाने देंगे। आपातकाल के पूरे दो वर्ष तक घर में न खिड़की रही न दरवाजा। साड़ी और चादर बांध कर माँ ने काम चलाया।
जेल में बन्द जनसंघ कार्यकर्ताओं पर बहुत अत्याचार किये कांग्रेस सरकार ने। मुझे समझ में नही आता कि लोकतंत्र और संविधान को जब चाहे रौंदने वाले बेशर्म कांग्रेसी, भला किस मुंह से संविधान की बात करते हैं?
आज आवश्यकता है इनके दोगलेपन को जनता के सामने लाने की। जन-जन को बताने की कि बेशर्मी से संविधान की प्रति लहराने वाले कांग्रेसियों ने आपातकाल के दौरान कैसे लोकतंत्र की हत्या की थी।
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